आप भी पूज्य गुरुदेव के संकल्पों से जुड़ें और सनातन धर्म की रक्षा एवं मानव सेवा में सहयोग देकर पुण्य के भागी बनें ।

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पूज्य गुरूदेव का जीवन परिचय

श्री बालाजी के अनन्य भक्त, महान ऋषि सन्यासी बाबा के कृपा पात्र, देश के प्रख्यात संत एवं कथाव्यास श्री श्री 108 पूज्य श्री तुलसी पीठाधीश्वर स्वामी श्री रामभद्राचार्य जी महाराज के दीक्षित शिष्य एवं बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पूज्य गुरूदेव भगवान पं. श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी भारत ही नहीं अपितु दुनिया के सर्वाधिक प्रख्यात और युवा संत है। आप दुनिया के ऐसे एकमात्र लोकप्रिय युवा संत एवं कथाव्यास हैं जो देश भर में सनातन की जागृति के लिए दिन-रात सेवारत हैं। आप अकेले ऐसे कथाव्यास हैं जो श्रीमद् भागवत, श्रीराम कथा एवं श्री हनुमत कथाओं के माध्यम से संपूर्ण देश एवं विश्व में सनातन का प्रचार- प्रसार कर रहे हैं। श्री बालाजी और सन्यासी बाबा की सिद्धियों का प्रसाद पाकर आपने दुनिया के अनेक लोगों को दैहिक, दैविक और भौतिक कष्टों से मुक्ति दिलाई है।

आपका जन्म 4 जुलाई 1996 को छतरपुर जिले के एक छोटे से ग्राम गढ़ा में हुआ। गर्ग गोत्र और शुक्ल वंश ब्राह्मण परिवार में जन्में पूज्य गुरुदेव के पिताश्री का नाम श्री रामकृपाल गर्ग एवं माताश्री का नाम श्रीमती सरोज गर्ग है। आप तीन भाई बहिनों में सबसे बड़े हैं। आपसे छोटी एक बहिन एवं भाई हैं आपका बचपन एक गरीब ब्राह्मण परिवार में बीता, बाल्यकाल से ही प्रखर बुद्धि और सनातन के प्रति समर्पण ने आपकी धर्म की ओर मोड़ दिया थाा।

बचपन में अपने पूज्य दादा गुरू के साथ गांव के बाहरी हिस्से में स्थित प्राचीन बागेश्वर मंदिर में आप भगवान की पूजा अर्थना और सेवा करते थे। परिवार के भरण-पोषण के लिए वाल्यकाल से ही आपने रामचरित मानस और सत्यनारायण कमाओं व कर्मकाण्ड में कुशलता प्राप्त की और इसी के माध्यम से भिक्षा एवं दान पाकर परिवार के भरण-पोषण में पिता का सहयोग किया। गांव में ही स्थित शासकीय स्कूल में 8वीं तक की पढ़ाई एवं निकटवर्ती नगर गंज में 12वीं तक की पढ़ाई के बाद आपने स्वाध्यन करते हुए स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त की एवं बाद में देश के प्रख्यात संत पूज्य श्री तुलसी पीठाधीश्वर जगतगुरु श्री रामभद्राचार्य जी महाराज से मंत्र दीक्षा प्राप्त को आपके जीवन में तब नया मोड़ आया जब दादा गुरु का काशीवास हुआ। उनके देहावसान के बाद आप कुछ समय के लिए विचलित हुए किन्तु उन्हीं की प्रेरणा से आपको श्री बालाजी की सेवा का लक्ष्य प्राप्त हुआ। इस एक लक्ष्य के प्रति एक निष्ठा और समर्पण प्रकट करते हुए आपने बचपन में ही अज्ञातवास किया और इसी अज्ञातवास के माध्यम से आप पर श्री बालाजी की कृपा पात्र हुई। उनके सिद्धि व प्रसाद को पाकर आपने महर्षि वाल्मीक के कालखण्ड की उस विधि को प्राप्त किया जिस विधि के माध्यम से आप बगैर किसी व्यक्ति के बताए हुए उसके विषय में भूत, वर्तमान और भविष्य की प्रेरणाएँ कागज पर अंकित कर देते हैं।.

इसी सिद्धिरूपी कृपा के माध्यम से आपने सनातन के प्रति शों के समर्पण को बढ़ाने और संपूर्ण विश्व में सनातन का प्रचार व भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की दिशा में अपनी प्रारंभ कर दी पर स्वयंभू श्री बालाजी एवं बागेश्वर महादेव के मंदिरों का रखरखा एवं निर्माण करने के साथ साथ आपने यहां भक्तों के आगमन एवं उनके लिए नियमित चलने वाली आतपूर्णा रसोई को प्रारंभ किया। आज पूज्य गुरूदेव देश और संपूर्ण विश्व में धार्मिक कथाओं का काम कर लाखों लोगों को सनातन संस्कृति से जोड़ने का कार्य करते हुए अपनी कृपा रूपी सिद्धियों के माध्यम से उनके कष्टों के निवारण का मार्ग प्रशस्त्र कर रहे हैं।

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